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गुरुवार, 16 जुलाई 2009

ग़ज़ल
अपनी क्या तकदीर जनाब

हवा में जैसे तीर जनाब

कुछ ग़ज़लें कुछ गीत फकत

है अपनी जागीर जनाब


लफ्जों के वो बानी थे

क्या ग़ालिब क्या मीर जनाब


जंग मुहब्बत से जीतो

छोडो भी शमशीर जनाब


प्यार की धारा बह निकले

कीजे वो तदबीर जनाब


खाब जो कल मैंने देखा

तुम उसकी ताबीर जनाब


शेर नमिता के जैसे
तरकश के हों तीर जनाब

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भरी भीड़ में

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भरी भीड़ में

कोई मिल जाये

जो तुमसा

तो बहुत है

एक उम्र जीने के लिए

वर्ना तो लोग

उम्र गुज़र देते हैं

तुम जैसे नगीने के लिए

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शनिवार, 4 जुलाई 2009

नट

वो हम जैसा दिखता है
पर हम जैसा है नही
हम चलते है जमीन पर
बात करते है आसमान की
वो चलता है रस्सी पर
बात करता है
सिर्फ़ पेट की
दिखाता है करतब
अजब अनोखे अनूठे
और एक पहिये की साइकिल
रस्सी पर चलाता हुआ
अपने आस पास जुटी भीड़ से
पूछता है एक ही सवाल
मुकाबला करोगे
मेरे बैलेंस का
अपने बैंक बैलेंस से
मेरा बैलेंस मेरी मजबूरी है
मेरी रोज़ी रोटी है
तुम्हारा बैलेंस ?
तुम्हारा स्टेटस सिम्बल !