शहर की इसी ख़ास जगह पर
लगता है रोज़ मजदूर बाज़ार
मेहनती लोगों की दुकान
सजती है रोज़
बेंचे जाते हैं लोग
मजदूरी के लिये
दाम लगते हैं
मोल भाव होता है
आदमी का ख़ून पसीना
और मेहनत
सब कुछ नीलाम होता है
सीमेंट के शहरी जंगल को
और भी चिकना करने के लिये
आदमी को आदमी ख़रीदता है
बेजान इमारत के लिये
मंगलवार, 10 जुलाई 2007
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