ग़ज़ल
अपनी क्या तकदीर जनाब
हवा में जैसे तीर जनाब
कुछ ग़ज़लें कुछ गीत फकत
है अपनी जागीर जनाब
लफ्जों के वो बानी थे
क्या ग़ालिब क्या मीर जनाब
जंग मुहब्बत से जीतो
छोडो भी शमशीर जनाब
प्यार की धारा बह निकले
कीजे वो तदबीर जनाब
खाब जो कल मैंने देखा
तुम उसकी ताबीर जनाब
शेर नमिता के जैसे
तरकश के हों तीर जनाब
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