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बुधवार, 31 अगस्त 2016

कैसे लिखूँ कुछ
रोज़ सोचती हूँ आज लिखूंगी कुछ चाहे कविता या कहानी या कुछ और पर लिखूंगी ज़रूर कुछ नया पर लिख नहीं पाती ऐसा नहीं है ,कि विचार कौंधते नहीं कुछ मैं सोचती नहीं पर हकीकत यह है कि विचारों की जलधारा इतनी तीव्र है ,कि बहा ले जाती है मेरे शब्दों को अपने साथ जैसे बहा ले गई मन्दाकिनी कई लोगों को अपने साथ उन लोगों के साथ मर गए मेरे शब्द भी बह गए विचारों की सुनामी में दब गए आक्रोश के पहाड़ तले दफ़न हो गए बेबसी की ज़मीन में उन जिंदा लाशों की तरह क्या पता बाकी हों कुछ जिंदगियां बाकी हों कुछ साँसें जो सिसक रही हों अब भी किसी पहाड़ के तले या मलबे के ढेर के नीचे उसी तरह सिसक रहे हैं मेरे शब्द भी कैसे लिखूं कुछ ?? (नमिता राकेश )

सोमवार, 29 अगस्त 2016

शाम हो गई एक और दिन रात मे ढल कर अलविदा कहने को है मेरी तुम्हारी बात आज फिर अधूरी रह गई आज फिर आँखों का साथ होंठों ने नहीं दिया आज फिर रात बहुत लम्बी होगी कल के इन्तज़ार में बीतेगा एक एक लम्हा एक एक बरस की तरह आज फिर ख़ाब तरसेंगे ताबीर के लिए क्यों कि रात कटेगी आँखो में किसी को अपने पास होने की ख्वाहिश में जबकि दिल को मालुम है यह ख्वाहिश पूरी नहीं होगी हर दिन की तरह और, हर दिन की तरह यह दिन भी बीत ही जाएगा कल फिर से जिएंगे हम एक नया दिन एक दूसरे के साथ एक दूसरे की याद में।।🌹🌹