शाम हो गई
एक और दिन
रात मे ढल कर
अलविदा कहने को है
मेरी तुम्हारी बात
आज फिर अधूरी रह गई आज फिर आँखों का साथ होंठों ने नहीं दिया
आज फिर
रात बहुत लम्बी होगी
कल के इन्तज़ार में
बीतेगा एक एक लम्हा
एक एक बरस की तरह
आज फिर
ख़ाब तरसेंगे ताबीर के लिए
क्यों कि
रात कटेगी आँखो में
किसी को
अपने पास होने की ख्वाहिश में
जबकि दिल को मालुम है
यह ख्वाहिश पूरी नहीं होगी हर दिन की तरह
और, हर दिन की तरह
यह दिन भी
बीत ही जाएगा
कल फिर से जिएंगे हम
एक नया दिन
एक दूसरे के साथ
एक दूसरे की याद में।।🌹🌹
सोमवार, 29 अगस्त 2016
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