ग़ज़ल
जीने के लिए बस यही वरदान चाहिए
दिल में खुलूस होंठों पे मुस्कान चाहिए
इस मुल्क को ना हाकिम ओ सुलतान चाहिए
गाँधी सुभाष जैसा निगेहबान चाहिए
गोरो के कहर मुगलों के जुल्मो सितम के बाद
अपनों की साजिशों का समाधान चाहिए
छोटी ही सही या खुदा गुज़रे हँसी ख़ुशी
उम्र ऐ दराज का किसे वरदान चाहिए
बेटी लगे बोझ तो उस माँ को सौंप दो
जिस माँ की खाली गोद को संतान चाहिए
सच मानियेगा दोस्तों वो दिन हवा हुए
कहते थे जब घरो में एक दालान चाहिए
फुटपाथ पर रहता है महिलात बना कर
मजदूर को किसी का ना एहसान चाहिए
द्वारा -नमिता राकेश
बुधवार, 4 अगस्त 2010
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3 टिप्पणियां:
ek-ek line sach ke behad qareeb aur man ko chhoo jane walee hai, especially these
गोरो के कहर मुगलों के जुल्मो सितम के बाद
अपनों की साजिशों का समाधान चाहिए
बेटी लगे बोझ तो उस माँ को सौंप दो
जिस माँ की खाली गोद को संतान चाहिए
सच मानियेगा दोस्तों वो दिन हवा हुए
कहते थे जब घरो में एक दालान चाहिए
bahut achchha likha hai aap ne
बहुत सुन्दर प्रस्तुति ..
बेटी लगे बोझ तो उस माँ को सौंप दो
जिस माँ की खाली गोद को संतान चाहिए..
bahut khoob..
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